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tenant rights : कितने साल बाद किराएदार का हो जाएगा मकान पर कब्जा, जानिये प्रोपर्टी कब्जे से जुड़ा कानून

tenant and landlord rights : प्रोपर्टी पर कब्जे की घटनाएं तो आपने खूब देखी-सुनी होंगी। ये अक्सर लापरवाही का ही नतीजा होती हैं। कई बार असल प्रोपर्टी मालिक (tenant landlord rights in law) प्रोपर्टी लेने के बाद या किराये पर देने के पश्चात कई वर्षों तक नहीं संभालता और उस प्रोपर्टी पर किरायेदार ही हक जताने लगता है। इससे पहले की प्रोपर्टी पर किरायेदार का कब्जा जमाए या मालिकाना हक का दावा करे, इन जरूरी बातों को जान लें।

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tenant rights : कितने साल बाद किराएदार का हो जाएगा मकान पर कब्जा, जानिये प्रोपर्टी कब्जे से जुड़ा कानून

My job alarm - (Property Knowledge): आमतौर पर लोग एक्स्ट्रा इनकम के चक्कर में अपने घर या प्रोपर्टी को किराये पर दे देते हैं। इसके बाद वे सिर्फ किराया लेने तक सिमित रहते हैं। प्रोपर्टी के बारे में वे कुछ नहीं सोचते और धीरे-धीरे समय बीतता चला जाता है। एक समय पर ऐसी स्थिति आती है किरायेदार उसी प्रोपर्टी पर अपना मालिकाना हक (Rights of Tenant and landlord) जताने लगता है। इससे प्रोपर्टी के असल मालिक की परेशानी बढ़ जाती है, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है। 

चूंकि प्रॉपर्टी से जुड़े कानून में भी कुछ ऐसे प्रावधान हैं, जिनकी आड़ में किरायेदार मकान मालिक की संपत्ति पर हक का दावा कर सकता है। इसलिए भूल पर भूल करने से आप अपनी प्रोपर्टी गंवा भी सकते हैं। ऐसे में पहले ही प्रोपर्टी मालिक को जरूरी बातों का ध्यान (property rights of tenant and landlord) रखना चाहिए।

ऐसे पैदा होती है प्रतिकूल कब्जे की स्थिति-

भारत में कोई किरायेदार किसी प्रोपर्टी पर लगातार 12 वर्षों तक काबिज रहता है तो उसके बाद वह उस घर या प्रोपर्टी पर अपना मालिकाना हक (property Rights of Tenant) जता सकता है। इसे संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जा यानी एडवर्स पजेशन कहा जाता है। यह स्थिति तब पैदा होती है जब मकान मालिक की ओर से कई बातों का ध्यान नहीं होता। संपत्ति पर पट्टा समाप्त होने पर अक्सर ऐसा होता है। इसे लेकर बनाए गए लिमिटेशन एक्ट 1963 के अनुसार किसी निजी संपत्ति के स्वामित्व का दावा करने की समय अवधि 12 वर्ष है। हालांकि सरकारी संपत्ति के लिए यह अवधि 30 साल तक होती है।

ऐसे हो सकता है मकान मालिक को नुकसान-

कुछ किरायेदार ऐसे भी हो सकते हैं जो लिमिटेशन एक्ट 1963 (limitation act 1963) का गलत तरीके से फायदा उठाने की फिराक में होते हैं। ऐसे में मकान मालिक को पहले से ही सतर्क रहना चाहिए। हालांकि किरायेदार को कानून के तहत यह साबित करना होता है कि लंबे समय से संपत्ति पर उसका कब्जा (possession rules on property) था। इस दौरान किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई। इसके अलावा टैक्स की पर्ची, रसीद, बिजली, पानी का बिल, गवाहों के एफिडेविट आदि भी कब्जा करने वाले शख्स को देनी होगी। इनके बिना वह अपना दावा नहीं जता सकता। इसलिए मकान मालिक को ये रसीद हमेशा अपने पास ही रखनी चाहिए।

मकान मालिक रखें इस बात का ध्यान - 

मकान मालिक (property Rights of landlord) को हमेशा सावधान रहते हुए अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए। ऐसे हालात से बचने के लिए मकान मालिक को पहले ही रेंट एग्रीमेंट बनवा लेना चाहिए। इसके बाद ही मकान या प्रोपर्टी को किराये पर देना चाहिए। इसके लिए लीज डीड भी बनवाई जा सकती है। रेंट एग्रीमेंट में किरायेदार के लिए तय किए गए किराये सहित अन्य तमाम जानकारियां होती हैं। रेंट एग्रीमेंट 11 महीने का ही होता है, इसलिए इस अवधि के समाप्त होने पर रिन्यूअल जरूर करा लें। रेंट एग्रीमेंट (rent agreement rules) में हर जरूरी बात को शामिल करना न भूलें।

कानून में यह है प्रावधान-

कानूनी रूप से एडवर्स पजेशन (adverse possession) के तहत कोई किरायेदार 12 साल तक किसी संपत्ति पर कब्जा रखता है तो वह संपत्ति पर अधिकार जता सकता है। ऐसे में असल मालिक की परेशानी बढ़ सकती है और वह अपनी प्रोपर्टी गवां भी सकता है। एडवर्स पजेशन के अनुसार जिसके कब्जे में संपत्ति होती है, वह उसे बेचने का अधिकार प्राप्त कर लेता है। ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट (Transfer of property act) में भी एडवर्स पजेशन को लेकर यही बात कही गई है। इसलिए इस बात का भी मकान मालिक को ध्यान रखना चाहिए।

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