Supreme Court : ससुराल वाले नहीं छीन सकते बहू से ये अधिकार, जानिए कोर्ट का फैसला
Rights of daughters-in-law in property : विवाह के बाद लड़की माता-पिता का घर छोड़कर अपने नए घर यानी ससुराल चली जाती है। यहां न सिर्फ उसे नया परिवार बल्कि कानूनी तौर पर कई नए अधिकार भी मिलते हैं। हालांकि, अधिकतर महिलाएं अपने इन अधिकारों के बारे में पूरी तरह से अनजान रहती हैं। जिसकी वजह से शादीशुदा महिला अपने अधिकारों से वंचित रह जाती है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सास, ससुर और बहू के बीच के विवाद में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में बताया हैं कि बहू के इस अधिकार को ससुराल वाले कभी नहीं छीन सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुआ ये अहम फैसला सुनाया हैं..
My job alarm - (Supreme Court) : सास-ससुर और बहू के विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि बहू को ससुराल में रहने का संयुक्त अधिकार है और यह अधिकार बहू से नहीं छीना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ससुराल वाले वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 के तहत त्वरित प्रक्रिया अपनाकर बहू को घर से नहीं निकाल सकते।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 (पीडब्ल्यूडीवी) का उद्देश्य महिलाओं को उनके ससुराल के घर या साझा घर में सुरक्षित आवास प्रदान करना और पहचानना है, चाहे वह कोई भी हो। घर का मालिक है या कोई अधिकार नहीं है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 को हर स्थिति में अनुमति देने से, भले ही इससे किसी महिला का पीडब्ल्यूडीवी कानून के तहत साझे घर में रहने का हक प्रभावित होता हो, वो उद्देश्य पराजित होता है, जिसे संसद ने महिला (Rights of daughters-in-law in property) अधिकारों के लिए हासिल करने एवं लागू करने का लक्ष्य रखा है।’’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के हितों की रक्षा करने वाले कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वे बेसहारा नहीं हों या अपने बच्चे या रिश्तेदारों की दया पर निर्भर ना रहें।
पीठ ने कहा, ''बहू के साझा घर में रहने के अधिकार को केवल इसलिए नहीं छीना जा सकता क्योंकि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 के अनुसार फास्ट-ट्रैक प्रक्रिया में बेदखली का आदेश प्राप्त कर लिया गया है।'' इस पीठ में जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी भी शामिल थीं। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
हाई कोर्ट ने महिला को ससुराल का घर खाली करने का आदेश दिया था. सास और ससुर ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल और कल्याण अधिनियम, 2007 के प्रावधानों के तहत आवेदन दायर किया था। और अपनी पुत्रवधू को उत्तर बेंगलुरु के अपने आवास से निकालने का आग्रह किया था। उच्च न्यायालय (high court) की खंडपीठ ने 17 सितंबर, 2019 के फैसले में कहा था कि जिस परिसर पर मुकदमा चल रहा है वो वादी की सास (दूसरी प्रतिवादी) का है और वादी की देखभाल और आश्रय का जिम्मा केवल उनसे अलग रह रहे पति का है।
सास-ससुर की संपत्ति में बहू का अधिकार
दरअसल, हमारे देश का कानून कहता है कि माता-पिता द्वारा स्वअर्जित संपत्ति (self acquired property) पर बेटों का अधिकार होता है. वे अपने माता-पिता द्वारा बनाई गई संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा कर सकते हैं। वहीं, बहू अपनी सास द्वारा अर्जित संपत्ति पर अपना हक नहीं जता सकती। ऐसी संपत्ति में बहू हिस्सा नहीं मांग सकती.
हिस्सा पाने की यह है प्रक्रिया
अगर हम बहुओं के अधिकारों की बात करें तो आपको बता दें कि पति की पैतृक संपत्ति पर बहुओं का अधिकार (Rights of daughters-in-law on ancestral property) दो तरह से हो सकता है। यदि पति संपत्ति का अधिकार बहू को हस्तांतरित करता है तो इस स्थिति में बहू का उस पर अधिकार हो सकता है। इसके अलावा पति की मृत्यु के बाद संपत्ति पर बहू का भी अधिकार हो सकता है।शादी होने के बाद बेटी दूसरे परिवार में बहू के रूप में जाती है।
हालांकि, ससुराल की संपत्ति (property of mother-in-law and father-in-law) में बहू हिस्सा मांगने की हकदार नहीं है, वहीं पिता की संपत्ति पर उसका पूरा हक होता है। आपको इस बारे में पता होना चाहिए कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच ट्रांसफर होने वाली संपत्ति पैतृक संपत्ति मानी जाती है। वहीं बंटवारा होने के बाद पैतृक संपत्ति स्व-अर्जित संपत्ति में बदल जाती है।