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High Court's Decision : हाईकोर्ट ने बताया- अविवाहित बेटी पिता से गुजारा भत्ता मांग सकती है या नहीं

daughters rights on father's property : अक्सर देखा जाता है आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों में अक्सर बेटियों पर जल्दी जिम्मेदारी आ जाती है। कई बार पिता और भाई, बेटी के बालिग होने पर उसकी आर्थिक मदद से पीछे हट जाते हैं, भले वह अविवाहित हो। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बेटियों को अपने पिता से आर्थिक सहायता लेने का अधिकार है? हाल ही में एक ऐसे ही मामले पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। आइए जानते हैं - 

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High Court's Decision :  हाईकोर्ट ने बताया- अविवाहित बेटी पिता से गुजारा भत्ता मांग सकती है या नहीं

My job alarm - भारत में अविवाहित बेटियों की स्थिति हमेशा से चुनौतीपूर्ण रही है, खासकर जब परिवार में आर्थिक जिम्मेदारी की बात आती है। कई बार देखा जाता है कि बालिग होने के बाद परिवार, खासतौर पर पिता या भाई, बेटियों की जिम्मेदारी उठाने से पीछे हट जाते हैं। यह स्थिति तब और भी पेचीदा हो जाती है जब बेटियों के पास खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पर्याप्त साधन या अवसर नहीं होते। हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया जिसमें एक महिला ने अपनी बेटी के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसके परिणामस्वरूप बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया।

 

 

समस्या की शुरुआत

 

 

हमारे समाज में यह मान्यता है कि 18 साल की उम्र पूरी करने के बाद हर व्यक्ति आत्मनिर्भर हो जाता है। परंतु, वास्तविकता इससे कहीं अधिक जटिल है। 18 साल की उम्र में भले ही एक व्यक्ति कानूनी तौर पर बालिग हो जाता है, परंतु उसे नौकरी पाने और आत्मनिर्भर बनने में कई साल लग जाते हैं। शिक्षा पूरी करना, नौकरी ढूंढना और फिर अपने पैरों पर खड़ा होना एक लंबी प्रक्रिया होती है, जो खासतौर पर बेटियों के लिए और भी मुश्किल हो सकती है।

ऐसे में सवाल उठता है कि अगर बेटियां बालिग हो जाती हैं, लेकिन आत्मनिर्भर नहीं हो पातीं, तो क्या उनका पिता से आर्थिक (daughters rights on father's property) सहायता लेने का अधिकार खत्म हो जाता है? इसी सवाल को लेकर एक महिला और उसकी बेटी के मामले में बांबे हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया।

कोर्ट का निर्णय


इस मामले में बांबे हाईकोर्ट (Bombay High Court Decision) ने कहा कि अविवाहित बेटियों को उनके पिता से गुजारा खर्च (मेनटेनेंस) लेने का अधिकार है, चाहे वे बालिग हो चुकी हों। अदालत ने यह भी कहा कि अगर कोई बेटी अपनी शिक्षा पूरी कर रही है या आत्मनिर्भर बनने की प्रक्रिया में है, तो उसे पिता से गुजारा भत्ता (gujara bhatta) मिलने का अधिकार है। यह फैसला खासतौर पर उन बेटियों के लिए राहत लेकर आया है जो शिक्षा पूरी करने के लिए संघर्ष कर रही हैं और अभी आर्थिक रूप से अपने पिता पर निर्भर हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस भारती डांगरे (Justice Bharti Dangre) ने कहा कि तलाकशुदा या अलग रह रहे माता-पिता की बालिग बेटियां भी अपने पिता से गुजारा भत्ता लेने की हकदार हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में बेटी की मां भी उसके लिए गुजारा भत्ता का दावा कर सकती है।

पूरा मामला

यह मामला एक महिला द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है। इस महिला की शादी 1988 में हुई थी, लेकिन वह 1997 में अपने पति से अलग हो गई थी। वह अपने दो बेटों और एक बेटी के साथ रहती थी। जब तक बच्चे नाबालिग थे, उनके पिता नियमित रूप से गुजारा भत्ता देते रहे। लेकिन जैसे ही बेटी 18 साल की हुई, पिता ने उसका गुजारा भत्ता देना बंद कर दिया।

महिला ने अपनी बेटी के लिए 15,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता (gujara bhatta)  की मांग की, क्योंकि बेटी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही थी और अभी आत्मनिर्भर नहीं थी। फैमिली कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 (1) (बी) के अनुसार गुजारा भत्ता केवल नाबालिग बच्चों को ही मिल सकता है। इस फैसले के बाद महिला ने बांबे हाईकोर्ट का रुख किया।

हाईकोर्ट का फैसला


बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि सीआरपीसी के तहत बालिग बेटियों को भी गुजारा भत्ता का हक है, बशर्ते वे आत्मनिर्भर नहीं हैं। अदालत ने यह भी कहा कि शिक्षा प्राप्त कर रही बेटियों को भी यह अधिकार है, क्योंकि वे अभी आर्थिक रूप से स्थिर नहीं हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाईकोर्ट (High Court) के पूर्व के फैसलों का भी हवाला दिया, जिनमें यह स्पष्ट किया गया है कि बालिग बेटियां भी गुजारा भत्ता लेने की हकदार हैं।

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