High Court : शादीशुदा व्यक्ति दूसरी महिला के साथ लिव इन में रह सकता है या नहीं, सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
Live In Relationship Law : लिव इन में रहना कोई गैरकानूनी नहीं है। ये अधिकार देश के कानून में मिला है। लेकिन क्या कोई शादीशुदा व्यक्ति या शादीशुदा महिला बिना तलाक लिए किसी दूसरे के साथ लिव इन में रह सकती है। इसको लेकर ही हाईकोर्ट (High Court) ने अहम टिप्पणी की है।
My job alarm (ब्यूरो) : शादीशुदा व्यक्ति अगर किसी दूसरी औरत के साथ लिव इन रिलेशनशीप (Live In Relationship Law ) में रहता है तो इसका खामियाजा उसकी पत्नी और उसके बच्चों को भुगतना पड़ता है।
हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी सुनवाई के दौरान की। हाईकोर्ट ने शादीशुदा आदमी के लिव इन (Live In Relationship) में रहने पर आपत्ति जताई। इसके साथ ही कोर्ट ने सुरक्षा की मांग वाली कपल की याचिका को भी रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने शख्स को अपनी पत्नी को 26000 रुपए का भुगतान करने को भी कहा है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कही ये बड़ी बात
लिव इन में रह रहे कपल ने आरोप लगाया कि शख्स की पत्नी उनके घर आई और हंगामा खड़ा किया। लिव इन पार्टनर के साथ गलत व्यवहार किया। साथ ही झूठे आरोप भी लगाए। जस्टिस आलोक कुमार इस मामले की सुनवाई कर रहे थे। जज ने कहा कि कपल के जीवन और स्वतंत्रता के लिए किसी भी खतरे की धारणा को प्रदर्शित नहीं करते हैं और ये याचिका केवल गलत संबंध को कवर-अप करने के लिए लगाई गई है।
पिछले दिन ही कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप (live-in relationship) में रहने वाले और पुलिस सुरक्षा की मांग करने वाले दो शादीशुदा कपल पर 2,6000 रुपए का जुर्माना लगाया था। कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि विवाह से बाहर रहने की किसी की पसंद का मतलब ये नहीं है कि विवाहित व्यक्ति विवाह के दौरान दूसरों के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के लिए आजा है।
इन रिलेशनीशप को विवाह के तौर पर मिलती है मान्यता
'सहमति से विवाहित व्यक्तियों के बीच लिव-इन को “सामाजिक रूप से अवांछनीय” माना जा सकता है, लेकिन वे आपराधिक नहीं हैं और अदालतें ऐसे व्यक्तियों पर नैतिकता की अपनी धारणा नहीं थोप सकती हैं.' हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों को लेकर अहम टिप्पणी की है।
High Court ने कहा है कि इन संबंधों को शादी के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती। ऐसा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है जो लिव इन रिलेशनशिप को विवाह के तौर पर मान्यता देता हो। कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर दो लोग केवल आपसी समझौते के आधार पर एक साथ रहते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि वे विवाह अधिनियम के दायरे में आते हैं। जस्टिस मुहम्मद मुश्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे जोड़ों का साथ रहना विवाह होना नहीं है और न ही इसमें तलाक की मांग की जा सकती है।