High Court : क्या पति से अलग होने पर ससुराल में रह सकती है पत्नी, हाईकोर्ट का अहम फैसला
My job alarm - (Delhi High Court news) शास्त्रों के अनुसार देखा जाए तो पति पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का होता है। लेकिन आज के समय में जो चल रहा है वो किसी से छुपा नही है। आज के समय में सात जन्म तो छोड़ो कई कपल तो इस एक जन्म में भी मुश्किल ही निभा पाते (couples dispute cases) है। आज कल शादियों से ज्यादा तलाक की खबरें सामन आती रहती है। कुछ तो बिना तलाक ही सालों साल एक दूसरे से अलग रह रहे होते है। ऐसा परिवारिक हिंसा के कारण भी होता है। क्योंकि कई बार ऐसी स्थितक में अलग रहना ही महिला के लिए आखिरी विकल्प बचता हे ताकि वो ससुराल की प्रताड़ना से बच सके। हाल ही में पति-पत्नी और ससुराल के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court news) ने एक अहम टिप्पणी की है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस मामले पर हाईकोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) के तहत महिला को ससुर के घर में रहने का पूरा अधिकार है, भले ही वह वैवाहिक अधिकारों की बहाली (Restoration of marital rights) के लिए दाखिल पति की याचिका का विरोध कर रही है। बता दें कि इस घरेलू मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि ससुराल में निवास पाने का अधिकार हिंदू विवाह अधिनियम (hindu marriage act) के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी अधिकार से अलग है।
इसके अलावा, हाईकोर्ट (high court decision) ने महिला के सास-ससुर की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि जब बहू उनके बेटे के साथ रहने के लिए तैयार नहीं है तो उसे मकान में रहने का भी कोई अधिकार नहीं है।
क्या है अलग हुई पत्नी के लिए निवास का अधिकार
इस मामले की जस्टिटस चंद्रधारी सिंह ने मामले पर निचली अदालत के फैसले (lower court decision) के खिलाफ दंपति की याचिका को साफ तौर पर खारिज कर दिया है। दंपति ने याचिका में निचली अदालत के घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act in India) के तहत महिला को ससुराल के घर में रहने का अधिकार दिए जाने के आदेश को चुनौती दी थी। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत निवास का अधिकार, हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9 (वैवाहिक अधिकारों का पालन) के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी अधिकार (women's rights) से अलग है।
दंपत्ति के एक-दूसरे के खिलाफ दर्ज है 60 मुकदमे
याचिकाकर्ता ने बताया था कि उनकी बहू ने विवाद (daughter-in-law dispute case) के बाद सितंबर 2011 में अपना ससुराल छोड़ दिया था। याचिकाकर्ता ने कहा था कि दोनों पक्षों के बीच एक-दूसरे के खिलाफ 60 से अधिक दीवानी मुकदमे दायर किए गए हैं। इनमें से एक मामला महिला ने घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत दायर किया था और कार्यवाही के दौरान महिला ने संबंधित संपत्ति में निवास के अधिकार (rights of residence in property) का दावा किया था।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस मामले में निचली अदालत ने महिला यानि कि पत्नी की मांग को स्वीकार करते हुए कहा था कि वह मकान में पहली मंजिल पर रहने (निवास करने) की हकदार है। महिला की इस मांग को सेशन कोर्ट (session court decision on sepration of couple) ने भी सही ठहराया।
फैसले के बाद इसके खिलाफ सास-ससुर दिल्ली हाईकोर्ट चले गए, जहां उन्होंने कहा कि बहू ने साथ रहने से इनकार कर दिया है और वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए दाखिल याचिका का विरोध किया है। जब वह उनके बेटे के साथ रहने के लिए तैयार नहीं है तो उसे मकान में रहने का भी अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट (Delhi high court decoision) ने इन दलीलों को खारिज कर दिया।