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Consumer Court : बीमा कंपनी ने क्लेम देने से किया मना, कोर्ट ने किसान को दिलाए 27 लाख

Consumer Court decision : आजकल कई बीमा कंपनियां अलग-अलग तरह के इंश्योरेंस करती हैं। कारोबार, खेतीबाड़ी व पशुपालन के क्षेत्र में भी इंश्योरेंस की सुविधा लोगों को मिलने लगी है। इससे किसी तरह के जोखिम में आर्थिक नुकसान से बचा जा सकता है तथा कई अन्य फायदे (insurance ke fayde) भी मिलते हैं, लेकिन कई बार कुछ कंपनियां जरूरत पड़ने पर बीमा राशि देने में आनाकानी करने लगती हैं या लंबी कागजी प्रक्रिया में ग्राहक को उलझाकर टालमटोल करती हैं। ऐसा ही एक मामला किसान के साथ हुआ तो किसान ने कोर्ट की शरण ली और कोर्ट ने उसे लाखों की बीमा राशि दिलवाई। इस मामले को आइये जानते हैं इस खबर में विस्तार से।

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Consumer Court : बीमा कंपनी ने क्लेम देने से किया मना, कोर्ट ने किसान को दिलाए 27 लाख

My job alarm - उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना बहुत जरूरी है। खासकर इंश्योरेंस को लेकर कई बार अपने अधिकारों की जानकारी के अभाव में ग्राहकों को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बता दें कि इंश्योरेंस के एक मामले में जिला उपभोक्ता आयोग मुजफ्फरपुर (District Consumer Commission Muzaffarpur) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कंपनी (Universal Sompo General Insurance Company) को एक मधुमक्खी पालक को 27 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया है। यह मामला इस बात का प्रमाण है कि उपभोक्ता अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकते हैं और न्याय प्राप्त कर सकते हैं।

मधुमक्खी पालन का करवाया था बीमा

शिकायतकर्ता विजय कुमार, जो मुसाचक गांव के निवासी हैं, ने अपनी मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन के सुरक्षित व्यवसाय के लिए बीमा करवाया था। उन्होंने बीमा कंपनी से 17,50,000 रुपये का बीमा कराया था। इसके अलावा, उन्होंने संयंत्र और मशीनरी की सुरक्षा के लिए भी 9,50,000 रुपये का बीमा (insurance company benefit na de to kya kren) लिया। इस बीमा कवरेज के लिए उन्होंने बीमा कंपनी को कुल 15,115 रुपये का भुगतान भी किया था। यह बीमा केवल वित्तीय सुरक्षा ही नहीं, बल्कि व्यवसाय के लिए आवश्यक उपकरणों की सुरक्षा भी प्रदान करता था।

भयंकर बाढ़ का प्रभाव

4 अगस्त 2020 को आए भीषण बाढ़ ने विजय कुमार के मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन (Beekeeping and honey production) के व्यवसाय को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। उनकी सभी मशीनरी और संयंत्र बाढ़ में नष्ट हो गए, जिससे उनका पूरा व्यवसाय समाप्त हो गया। विजय कुमार ने तत्काल बीमा कंपनी को इस घटना की सूचना दी और बीमा क्लेम का दावा किया। लेकिन, बीमा कंपनी ने क्लेम (insurance company se claim kaise len) की राशि देने में अनिच्छा दिखाई और टालमटोल करने लगी।

बीमा कंपनी की टालमटोल नीति

बीमा कंपनी (insurance companies kon kon si hain)के कार्यालयों का चक्कर लगाने के बावजूद विजय कुमार को कोई मदद नहीं मिली। यह स्थिति न केवल आर्थिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी उनके लिए बहुत कठिन थी। बीमा कंपनी (insurance claim kaise len) की तरफ से मिलने वाली निराशा ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वे कानूनी उपाय अपनाएं। अंततः, उन्होंने सितम्बर 2021 में जिला उपभोक्ता आयोग मुजफ्फरपुर में शिकायत दर्ज कराई।

आयोग का फैसला

मामले की सुनवाई लगभग दो वर्षों तक चली। आयोग की अध्यक्षता पीयूष कमल दीक्षित ने की, जिसमें सदस्य सुनील कुमार तिवारी और अनुसुया शामिल थे। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान विजय कुमार ने अपने पक्ष को मजबूती से रखा। आयोग ने अंततः बीमा कंपनी को 27 लाख रुपये (insurance claim)का भुगतान करने का आदेश दिया।

बीमा राशि का भुगतान और ब्याज

आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि बीमा कंपनी नियत समय में बीमा राशि का भुगतान (payment of insurance amount)नहीं करती है, तो उसे 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से राशि का भुगतान करना होगा। यह आदेश बीमा कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है कि उन्हें अपने दावों का सही ढंग से निपटारा करना चाहिए।

मानसिक और आर्थिक क्षतिपूर्ति

इसके अलावा आयोग ने विजय कुमार को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक क्षति के लिए 40,000 रुपये की क्षतिपूर्ति का भी आदेश दिया। यह निर्णय उन सभी उपभोक्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो अपनी स्थिति में सुधार के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। उपभोक्ता अपने अधिकारों (consumers rights)के प्रति सचेत हों तो वे अपने नुकसान की पूरी भरपाई करवा सकते हैं।

कानूनी प्रक्रिया में सफलता


मानवाधिकार मामलों के अधिवक्ता एस. के. झा ने इस मामले में विजय कुमार की ओर से पैरवी की। उन्होंने कहा कि यह निर्णय केवल एक व्यक्तिगत जीत नहीं है, बल्कि यह उन सभी के लिए एक उदाहरण है जो अन्याय का सामना कर रहे हैं। सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं। इस निर्णय ने यह साबित कर दिया कि न्याय (insurance amount lene ke liye kya kren)प्राप्त करना संभव है यदि हम अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें और कानूनी प्रक्रियाओं का सही ढंग से उपयोग करें।

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